रूपरेखा-
 (1)प्रस्तावना 
(2)भारतीय संस्कृति और वृक्ष
(3)वनों से लाभ 
(4)वनों के कटने से हानियां
(5)वृक्षारोपण कार्यक्रम
(6) उपसंहार

(1) प्रस्तावना- भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता वनों में ही विकसित हुई है वृक्ष मानव का एक तरह से जीवन सहचर वृक्षों के अभाव में ना तो सरोवर जल से आपूरीत  रहते  और ना सरिताए कि कल कल ध्वनि से प्रवाहित  होती वृक्षों की जड़ों में वर्षा ऋतु का जल धरती केे अंदर पहुंचता है यही जल अक्षय स्त्रोतों में गमन करके अपार जल राशि प्रदान करता है इसमें मानव जीवन को राहत तथा सुख चैन मिलता है

(2) भारतीय संस्कृति और वृक्ष- भारत की सभ्यता वनों की गोद से ही विकास मान हुई है हमारे कृषि तथा मुनियों ने वृक्ष की छाया में बैठकर ही ज्ञान के भंडार मानव को सौंपा है वनों की गोद में ही गुरुकुल की स्थापना की गई थी इन गुरुकुल ओं में अर्थशास्त्री शासक दार्शनिक तथा राष्ट्र निर्माता शिक्षा ग्रहण करते थे इन्हीं वनों में आचार्य तथा  ऋषि मानव  मानव  के हित  साधन के लिए अनेक सूत्रों की खोज करते थे यह क्रम लगातार चला आ रहा है बनोगी वनों की हरीतिमा पक्षियों का कलरव   फूलों की अच्छादित  लताएं मानव मन को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर रही है

(3) वनों से लाभ- वनों से हमें भवन निर्माण की सामग्री मिलती है औषधीय जड़ी बूटियां गोंद घास तथा जानवरों का चारा बनो से ही प्राप्त होता है वृक्ष  वर्षा में भी सहायक है  रंग तथा कागज का स्त्रोत भी बन है 
       वन तापमान को  सामान्य बनाने में सहायक हैं यह मिट्टी के कटाव पर अंकुश लगाते हैं  दूषित वायु को ग्रहण करके शुद्ध एवं जीवन दायक वायु हमें प्रदान करते हैं  मानव कि जिंदगी के लिए जितनी वायु तथा जल अपरिहार्य है उतने वृक्ष भी आवश्यक हैं तुलसी पीपल तथा वटवृक्ष कोटि कोटि मानवों के श्रद्धा पात्र हैं गीता में पीपल वृक्ष का उल्लेख भगवान श्री कृष्ण ने किया है

(4)वृक्षों के कटने से हानियां- आज मानव भौतिक प्रगति के लिए आतुर है यह वृक्षों को अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए निष्ठा तथा बेदर्दी से काट रहा है औद्योगिक प्रतिस्पर्धा तथा जनसंख्या की वृद्धि के पल स्वरूप फल स्वरूप वनों का क्षेत्रफल दिन प्रतिदिन घटता चला आ रहा है वृक्षों पर चर्चा होने वाले पक्षियों का कलरव समाप्त हो चला है पक्षी प्राकृतिक संतुलन स्थिर रखने के प्रमुख कारण हैं इनके अभाव में यह संतुलन लड़खड़ा जाएगा अगर मानव ने इसी प्रकार वृक्ष की कटाई जारी  रखी तथा नए वृक्ष नहीं लगाए तो इसके अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाएगा वृक्षारोपण की कोई योजना नहीं है हमारे राजा महाराजाओं ने मानव की सुविधा हेतु सड़कों के दोनों और छायादार वृक्ष लगाए थे

(5) वृक्षारोपण कार्यक्रम- वृक्षारोपण के महत्व को भूतपूर्व केंद्रीय खाद्य मंत्री श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने स्वीकारा था इसके पश्चात इस कार्यक्रम को दिन प्रतिदिन विस्तृत किया जा रहा है

(6) उपसंहार-आज हमारे देश वासी बनो तथा वृक्षों की महत्ता एक स्वर में स्वीकार कर रहे हैं वन महोत्सव हमारे राष्ट्र की अनिवार्य आवश्यकता है देश की समृद्धि में वृक्षों का अपूर्व योगदान है यह आर्थिक उन्नति के साधन है इसलिए राष्ट्र के हर नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि वह वृक्षों को लगाकर धरती को हरा-भरा बनाए